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उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी में टूट, 8 दिग्गज नेताओं ने छोड़ा साथ

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पटना: बिहार की राजनीति में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) को एक और बड़ा झटका लगा है। पार्टी के व्यवसायिक प्रकोष्ठ से जुड़े आठ वरिष्ठ नेताओं ने गुरुवार को एक साथ इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने वाले नेताओं ने पार्टी पर अपने मूल सिद्धांतों और नीतियों से भटकने का आरोप लगाया है और वर्ष 2026 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू में शामिल होने का ऐलान किया है।
2025 के विधानसभा चुनाव में आरएलएम को चार सीटों पर जीत मिली थी। एक ओर जहां उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी विधायक बनीं, वहीं उनके बेटे को मंत्री बनाए जाने के बाद पार्टी के भीतर असंतोष खुलकर सामने आने लगा है।
ये नेता हुए पार्टी से अलग
इस्तीफा देने वालों में व्यवसायिक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष अनंत कुमार गुप्ता, वरीय प्रदेश उपाध्यक्ष उमेश प्रसाद, उपाध्यक्ष शिवचंद्र प्रसाद और मोहनलाल, मीडिया प्रभारी सह प्रवक्ता अजय कुमार बिट्टू, महासचिव गोपाल जी प्रसाद, गोपालगंज के जिलाध्यक्ष बासुकीनाथ गुप्ता और पटना पूर्वी के जिलाध्यक्ष शशि किशोर साह शामिल हैं। सभी नेताओं ने एक साथ अपना इस्तीफा सौंपा।
‘पार्टी ने खो दी अपनी विचारधारा’
प्रदेश अध्यक्ष अनंत कुमार गुप्ता ने मीडिया से बातचीत में कहा कि हाल ही में पार्टी की प्रदेश कमेटी को भंग कर दिया गया, जिससे कार्यकर्ताओं और नेताओं में गहरी निराशा फैली है। उन्होंने कहा कि जिन सिद्धांतों और विचारधाराओं से प्रेरित होकर वे पार्टी से जुड़े थे, अब वही पूरी तरह कमजोर पड़ चुकी हैं। ऐसे हालात में आत्मसम्मान के साथ पार्टी में बने रहना संभव नहीं था।
परिवारवाद के आरोप
उपाध्यक्ष शिवचंद्र प्रसाद ने कहा कि चुनाव परिणाम के बाद जिस तरह परिवार के सदस्यों को सत्ता में अहम भूमिका दी गई, उससे यह साफ हो गया कि आरएलएम भी परिवारवाद की राह पर चल पड़ी है। उन्होंने कहा कि यही वजह है कि अब वे जेडीयू में जाने का फैसला कर चुके हैं। उनके अनुसार, नीतीश कुमार ने बीते दो दशकों में बिना परिवारवाद को बढ़ावा दिए सभी वर्गों के लिए काम किया है।
पहले भी हो चुके हैं इस्तीफे
गौरतलब है कि नई सरकार के गठन के बाद आरएलएम के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे जितेंद्र नाथ पटेल और राष्ट्रीय प्रवक्ता राहुल कुमार भी पार्टी छोड़ चुके हैं। अब व्यवसायिक प्रकोष्ठ के आठ नेताओं के सामूहिक इस्तीफे को उपेंद्र कुशवाहा के लिए एक बड़ा राजनीतिक झटका माना जा रहा है।
लगातार हो रहे इस्तीफों से आरएलएम की संगठनात्मक स्थिति पर सवाल खड़े हो गए हैं।

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